सोमवार, 28 अक्टूबर 2013

टीआपी का खेल है बबुआ..


टीआपी का खेल है बबुआ..

भारत वाकई गजब का देश है और उससे भी ज्यादा गजब है यहां की मीडिया। जो मर्जी हो दिखाते रहो जनता का क्या है झक मारकर देखेगी और देखेगी नहीं तो जाएगी कहां। टीआरपी का गेम है वो भी बिल्कुल मछली बजार की तरह चीख चीख कर बताते हैं कि ताजी है ताजी है। शुक्र है ऑन स्क्रीन खबरों के दाम नहीं लगाते, लेकिन कहीं कहीं जिंदल जैसे ग्राहक दाम को सार्वजनिक कर देते हैं। या फिर कुछ गुरू भक्त पत्रकारिता का चोला ओड़े लोगों को घेर लेते हैं और पूछते हैं कि भई आप तो पांच हजार की नौकरी वाले थे आपके पास पांच सौ करोड़ कहां से आया इस पर पत्रकार महोदय बगले झांकते नजर आते हैं। आजकल सारा मीडिया बाबाओं की ड्यूटी बजा रहा है बस फर्क ये है इस ड्यूटी की पगार कोई और ही दे रहा है। शोभन सरकार ने सपना क्या देख लिया बवाल ही खड़ा हो गया। इससे पहले मीडिया आसाराम का घंटा बजाने में लगा था। लेकिन एक बात मेरी समझ में नहीं आती ये सब बाबाओं की खबरें इतनी बड़ी हैं क्या कि इनके अलावा कहीं और ध्यान ही नहीं जा रहा है या फिर ध्यान को भटकाया जा रहा है। इन बाबाओ से आगे बढ़े तो जरा ध्यान कीजिए की रूपया तो आसाराम से भी ज्यादा नीचे गिर रहा है उसपर मीडिया का ध्यान क्यों नहीं जाता और अगर जाता भी है तो रूपया हेडलाइन या फिर फास्ट न्यूज तक ही क्यों सीमित है। क्यों नहीं खबरों में रूपए को गिरने से रोकने के लिए उपयों के लिए स्पेशल प्रोग्राम बनाए जा रहे हैं। चीनी सैनिक जो लगातार घुसे चले आ रहे थे अब वो क्या भारत से डर के अपनी दीवार ऊंची करने चले गए। पाकिस्तान जो लगातार सीजफायर का उलंघन कर रहा था और आए दिन हमारे जवानों की गर्दन कलम कर रहा था वो अब क्या बकरीद की छुट्टियां मना रहा है। कोलब्लाक की फाइलें मिल गईं क्या ? या फिर मुजफ्फरनगर में फूल बंट रहे हैं। आखिर क्यों देश के लोगों को अपने मतलब के लिए भटकाया जा रहा है। यूपी में अखिलेश भैया को दो साल होने को है विकास के नाम पर कलंक का ग्राफ बढ़ता जा रहा है गुंडाराज कायम है मुस्कुराते मुलायम हैं। जस्टिस काटजू ने कहा था देश के नब्बे प्रतिशत लोग मूर्ख हैं बिलकुल सही बात है। कम से कम उत्तर प्रदेश में तो ये सही है अगर ऐसा ना होता तो पिछले दस साल से यूपी वाले माया मुलायम के नाम का सिक्का ना उछाल रहे होते। एक तानाशाही में मस्त है तो दूसरा खुद से कनफ्यूज है । देशभर की राजनीति का भविष्य तय करने वाला प्रदेश खुद अपने भविष्य से अंजान है। 

दीपक यादव

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