झुंड के बीच से उस
को चुन कर निकाला गया। क्योकि वही पसंद आया था। उसके दोनों हाथ पीछे की ओर मोड़कर
एक दूसरे में ऐंठ दिए गए। अब ऐंठा हुआ बदन एक तराजू पर था। वजन बताया गया, पैसों
का आकलन किया गया और मौत का सौदा तय हो गया। अब सिर को ऊपर की तरफ उठाया गया और गर्दन
पर छूरी धीरे-धीरे रेती जाने लगी। छूरी रेतने के साथ ही कुछ शब्द बुदबुदाए जा रहे
थे। गले से खून की एक लंबी धार पिचकारी की तरह निकल पड़ी। सफेद बदन लाल खून की
बहती धारों में लाल हो गया। मुंह खुला था लेकिन कटी गर्दन चीखने नहीं दे रही थी।
पूरा शरीर छटपटा रहा था। धीरे धीरे छटपटाहट कम हुई और बदन ढीला पड़ गया, गले से
बहती खून की धार अब बूंदों में बदल चुकी थी। अब उसकी ताजा लाश को लकड़ी के सपाट
कुंदे पर रखा गया। पहले घुटनों के पास से टांगों को काट के अलग किया गया। फिर
हाथों और पैरों को पकड़ कर एक झटका दिया गया। खाल फट चुकी थी। खाल के बीच उंगलियां
फंसा कर खींचा गया। तीन चार खींचाव के बाद बदन से पूरी खाल उतर चुकी थी। अब गर्दन
के ऊपरी सिरे से सिर को गड़ासे से काट के अलग किया गया। पसलियों के नीचे दाईं ओर
चाकू रेता गया। फेफड़े, दिल. आंतें और कई सारे अंदरूनी हिस्सों को खींच कर बाहर
निकाला गया। कलेजी और दिल को एक ओर रखकर बाकी के हिस्से को फेंक दिया गया। अब
गड़ासा शरीर के दूसरे हिस्सों को अलग कर रहा था। पहले टांगे, गर्दन, पसलिया, सीना
सब छोटे छोटे टुकड़ों में तब्दील हो चुका था। टुकड़ों को इकट्ठा किया गया और एक
काली पन्नी में रख दोबारा वजन किया गया। वजन के अनुसार पैसे और लाश के टुकड़ों की
अदला बदली हो गई।चंद दूरी तय करने के
बाद वो टुकड़े अब एक घर में थे। फिर इन टुकड़ों को एक बर्तन में निकाला गया।
टुकड़े ताजी लाश के थे सो आधे घंटे बाद भी गर्म थे, हल्की भांप भी निकल रही थी। बर्तन
में काफी देर तक एक एक हिस्से को बाकायदा साफ किया गया। पूर्व नियोजित प्लान के
तहत बाकी सामग्री तैयार थी सिर्फ इन टुकड़ों का इंतजार था। तीन कोशिश के बाद लाइटर
ने बर्नर को आग थमा दी। अब एक एल्युमिनियम का भगोना बर्नर पर सवार था। भगोने में
नो फैट वाला तेल डाला गया। कुछ देर पके तेल में कुछ लच्छेदार प्याज, लहसुन और
मिर्च मासाले उढेल दिए गए। अब बारी उन लाश के टुकड़ों की थी। एक एक कर हर टुकड़े
को भगोने में मौजूद मसाले में डुबा दिया गया। भगोने के ढक्कन को इस तरह से बंद
किया गया कि पकते हुए लाश के टुकड़े अपनी महक बिखेरते रहें। एक घंटे की मशक्कत के
बाद अब ये टुकड़े एक डिश बन चुके थे। पंगत लगी, लोगों ने अपनी पसंद से टुकड़े छाट
के अपनी थाली में डाल लिए। पहले रोटी के साथ फिर चावल के साथ एक एक टुकड़े को चट
कर लिया गया। बाद में किसी को नमक कम लगा तो किसी को मिर्च ज्यादा लगी, कोई तो बोला
बहुत लजीज था। अंत में बची कुछ हड्डियां जिनको खाना मुमकिन नहीं था। हड्डियां
कुड़े में फेंक दी गईं जो अब कुत्ते चटका रहे हैं।जो खाया गया वो जिंदा था।
जो खा रहे हैं वो खा के जिंदा हैं। अगर नहीं भी खाते तो भी जिंदा रहेंगे। कभी मैं
भी ऐसा था लेकिन शुक्र है अब नहीं हूं।
दीपक यादव
