शनिवार, 10 सितंबर 2022

ये हैं Md. गुलज़ार खान...


बीते दिन गुरुग्राम में गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन पर उतरकर अपने मित्र Abhishek Tripathi की प्रतीक्षा कर रहा था.. एक निश्चिंत और भोली मुस्कान बिखेरते चेहरे से आंखें मिली.. प्रतिक्रिया में मेरे चेहरे पर भी हल्की मुस्कान थी। हर ओर तनाव, अवसाद और क्रोध बांटते समाज के बीच निश्छल मुस्कुराते चेहरे ने मेरी कुछ जिज्ञासाएं बढ़ा दीं.. अगले ही पल मैं गुलज़ार के पास पहुंचा और यूं हीं हाल खबर लेने लगा।

गुलज़ार का परिचय ये है कि वो सुलभ इंटरनेशनल संस्था के शौचालय में नौकरी करते हैं। महीने में 9 हजार वेतन मिलता है। 900 रुपए उन्हें प्रतिदिन जमा करके संस्था को देने पड़ते हैं। लघु शंका के लिए 2 दीर्घ शंका के लिए 5 रुपए जो हम आप बेमन से भीख की तरह लकड़ी की उस पुरानी मेंज पर देकर आते हैं उसे गुलज़ार अपनी संस्था को जमा कराते हैं। जब कभी 900 से अधिक पैसे जुट गए तो वे गुलजार के, लेकिन जब कभी कम पड़े तो उन्हें अपने पास से पूरे करने पड़ते हैं। हलांकि गुलजार का कहना है की छुट्टी वाले दिन दिक्कतें होती है लेकिन सामान्य दिनों में पैसे जुट जाते हैं।    

गुलजार का परिवार झारखंड के एक छोटे और पिछड़े गांव में रहता हैं। बातचीत में गांव का नाम ध्यान से जाता रहा। गुलज़ार के तीन बच्चे हैं दो बेटे और एक बेटी। बड़ा बेटा 12 साल का है उससे छोटा करीब 9 साल का और सबसे छोटी बेटी करीब ढाई साल की.. सभी बच्चे अपनी मां यानि गुलज़ार की पत्नि के साथ गांव में ही रहते हैं। परिवार से फोन पर बात-चीत तो लगभग रोज हो जाती है लेकिन देखा-देखी नहीं हो पाती, क्योंकि ना तो गुलजार के पास और ना ही परिवार के पास स्मार्ट फोन है। लेकिन उसका हल भी गुलजार ने निकाल लिया है.. मेट्रो स्टेशन के सफाई या सुरक्षाकर्मियों के साथ उनके मधुर संबंध है लिहाजा उनके फोन से गांव में अपने मित्रों या रिश्तेदारों के फोन पर वीडियो कॉल करके कभी कभार अपने परिवार को निहार लेते हैं।

हम बात कर ही रहे थे.. तभी इस्त्री की हुई सफेद कमीज और नीली डेनिम पैंट पहने लैपटॉप बैग धारण किए एक एग्जिक्यूटिव सा दिखने वाला व्यक्ति फोन पर बतियाता हुआ शौचालय में दाखिल हुआ। करीब 2 मिनट बाद कंधे और कान के बीच फोन को दबाए वो व्यक्ति बाहर निकला और जाने लगा.. गुलज़ार मुझसे हो रही बात को बीच में काटते हुए, सर... सर... सर... लेकिन गुलज़ार की आवाज को अनसुना कर वो व्यक्ति अपने फोन में मगन आगे बढ़ता रहा.. मुझे लगा शायद मैं कुछ मदद करूं.. ओ फोन में लगे भाई साहब.. सफेद कमीज, नीली पैंट, ठेठ हरियाणवी अंदाज में मैने आवाज लगाई.. व्यक्ति झट से मुड़ा और मुझे देख कर क्या है के अंदाज में हाथ घुमा कर पूछने लगा.. ये बालक सर.. सर.. कहता हुआ आपको ही बुला रहा हैमैने कहा। व्यक्ति तल्ख अंदाज में वापस लौटा, फोन पर बात कर रहे शख्स को होल्ड पर लिया और गुलज़ार से कहा क्या है?” गुलजार ने मुस्कुराते हुए कहा सर 2 रुपएव्यक्ति ने कहा मूतने के पैसे नी लगतेऔर मेरी ओर भी नराजगी के साथ देखा.. मैं और गुलजार चुप थे हल्की मुस्कान के साथ.. फिर उस व्यक्ति ने अपने लैपटॉप बैग की उपरी जेब में हाथ डाला और 1-1 के दो छोटे सिक्के निकाले, मेज पर फेंके और फिर फोन पर बतियाता हुआ आगे बढ़ गया हलांकि इस बीच कई और लोग शौचालय में दाखिल होकर मेज पर पैसे रखते हुए हमें देखते हुए आगे बढ़ते रहे...

मैने गुलजार से अगला सवाल किया.. ऐसे तो बहुत से लोग आते होंगे जो गुस्सा करते होंगे, झगड़ते होंगे उनसे कैसे निपटते हो?गुलजार ने कहा कुछ नहीं सर.. ज्यादा दबाव नहीं बनाते हैं एक दो बार मांगते हैं अक्सर लोग चिढ़कर घूरते हुए पैसे दे जाते हैं जो झगड़े पर उतर जाते हैं फिर हम उनसे नहीं मांगते, क्योंकि हमारी कंपनी ने भी कहा है झगड़ा नहीं करना है इस बीच मैं अपने अतीत में था और याद करने की कोशिश कर रहा था कि कब, कहां मैने इस तरह बिना सोचे समझे गुलजार जैसे लोगों से बदमिजाजी की है.. कुछ धुंधली तस्वीरें मन में आईं।

गुलजार के साथ बातचीत को तेजी से बजी मेरे फोन की रिंग ने तोड़ा। मैने फोन रिसीव किया मित्र अगले मिनट पहुंचने वाला था.. मैने फिर मिलने के वादे के साथ गुलजार से विदा लिया.. गुलजार तेजी से आगे बढ़ा उसने झुककर पैर छूने की कोशिश की जिसे मैने नाकाम कर दिया लेकिन अगले ही पल उसने मुझे गले लगा लिया... करीब 10 मिनट तक चली इस बात चीत ने उसे पता नहीं क्यों थोड़ा भावुक सा कर दिया था.. मैने कहा क्या हो गया बोला कुछ नहीं सर बस ऐसे ही... और गुलजार ने अपने चेहरे पर सजी सदाबहार मुस्कान के साथ हाथ हिला कर मुझे रुख्सत किया...

#मनमस्तमगन..













 

ये हैं Md. गुलज़ार खान...

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