गुरुवार, 20 जून 2013

इस कम्बख्त झूठी दुनिया से मैखाना ही भला, जहां पीकर ही सही लोग सच तो बोलते हैं


मंगलवार, 18 जून 2013

जाग मेरे देश की मीडिया जाग...

जाग मेरे देश की मीडिया जाग............

आजतक सबसे तेज, एबीपी न्यूज आपको रखे आगे, न्यूज 24 नजर हर खबर पर, इंडिया न्यूज देश की धड़कन........ देश के तमाम न्यूज चैनल खुद को आगे दिखाने में कोई कसर नहीं छोड़ते और एक दूसरे का पीछा पकड़ कर बस टीआरपी की रेस में औधें मुंह भागे जा रहे हैं.. माफ कीजिएगा मेरी दुश्मनी किसी न्यूज चैनल से नही है और ना ही किसी ने मेरी तनख्वाह रोक रखी है... पूर्व खिलाड़ी रहा हूं और खेल की दुर्गति को देख कर तकलीफ होती है.. और पक्षपात को देखकर कोफ्त होती है.. कार्डिफ में चल रही क्रिकेट की चैंपियंस ट्रॉफी की पल- पल की खबर जनता को घोंट घोंट कर पिलाई जा रही है.. लेकिन भारत के पारंपरिक खेल कुश्ती के जूनियर बच्चों ने जो इतिहास रचा है..उसकी किसी को भी खबर तक नहीं है.. या शायद न्यूज चैनल और खबरिया अखबार इसे जरूरी ही नही समझते.. थाईलैंड के फुकेट में एशियन जूनियर कुश्ती चैंपियनशिप में भारत के जूनियर पहलवानों ने 24 में से 17 मेडल जीत कर भारतीय खेल में इतिहास रच दिया है... और हां अब हमारे देश की महिलाओं का हाथ चौका बेलन करने के साथ ही विदेशी महिलाओं को पटकनी देने में भी दुरुस्त हो गया है तभी तो हमारी महिला पहलवान सिल्वर मेडल जीत कर उपविजेता बनीं हैं....ये वो पहलवान हैं जिन्हें ये खेल खेलने के लिए कोई मंहगी किट की जरूरत नहीं पड़ती.. सच कहूं तो ज्यादातर पहलवानों को पहलवानी के लिए गद्दे भी नसीब नहीं होते..  सिर्फ एक लंगोट बांध कर मिट्टी के अखाड़े में ये पहलवान ही है जो हमारे इस खेल को जिंदा रखे हुए हैं.. इन पहलवानों में ज्यादातर गरीब घर से हैं.. एक बार ही सही लेकिन  उन महिलाओं के बारे में तो जरूरू सोचिए जो ब्यूटीपार्लर में बाल सजवानें और हांथों को मेहंदी से रंगने के बजाय उन्हीं हांथों से धोबिया पाठ और चरखा दांव लगा रही हैं...   ये तो हुई बात हमारे पहलवानों की अब बात अगर चैनलों और अखबारों की करें तो एक अख़बार ने पहलवानों पर थोड़ा रहम फरमाते हुए छोटे से कॉलम में कुश्ती की ये खबर जीत के दो दिन बाद ही सही लेकिन छाप तो दी.. लेकिन पल- पल की खबर पर दम भरने वाले हमारे टीवी चैनलों से इतनी बड़ी खबर कैसे मिस हो गई.. और तो और हर खबर के खबर गुरू गूगलानंद महाराज भी इस खबर के मामले फिस्ड्डी नजर आए..जब इस खबर को गूगल पर खोजना चाहा तो वहां भी वहां भी ये खबर एक गूंगे अनाथ बच्चे की तरह मिली जिसे ना खुद का पता था और ना ही किसी और का.. खैर छो़ड़िए मामला रफा दफा करते हैं... लेकिन एक बात जरूरू कहना चाहुंगा.. न्यूज चैनल हो या अखबार, बड़ा ही सम्मान है समाज में इस प्रोफेशन का , बड़ा असर होता है आपकी बातों का.. अब भी अगर आप चाहें तो इस खबर पर अमल कर के कम से कम इन जूनियर बच्चों को उनका सही सम्मान दिला सकते हैं जिसके ये सच्चे हकदार हैं..और इस बैट बल्ले की  दुनिया से थोड़ा सा बाहर निकल कर देश को उसकी मिट्टी और उसके खेल से रूबरू कराईए.. वरना देश तो वहीं देखेगा और पढ़ेगा जो आप लोग दिखाएंगे और पढ़ाएंगे... यही चंद शब्द थे जो अंदर से मुझे झंझोर रहे थे तो मैने निकाल कर बाहर रख दिए.....क्योंकि मैं भी इसी प्रोफेशन का हिस्सा जो हूं..

जय हिंद
दीपक यादव


सोमवार, 17 जून 2013

कब मिलने को आओगे....


कुछ दिन पहले की बात है रात को चैन की नींद सो रहा था.. सपने में कोई गाना गुनगुना रहा..उठा तो सोचा कि ये गाना कौन सा है, किस फिल्म का है दिमाग पर जोर डाला तो भी कुछ याद नहीं आया.. अगले दिन बस दिनभर ये गाना गुनगुनाता रहा.. पहली दो लाईनें ही आईं थी सपने में आगे गुनगुनाते हुए खुद ही बना दिया.... 


कब मिलने को आओगे....
कारी बदरी का मौसम सताए.. कि पिया कब मिलने को आओगे                                                                  नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे....
सावन की हाय पहली बारिश.. करती नहीं क्या तुमसे गुजारिश...                                                                              रस्ता देखूं मैं.. हर पल सोचूं मैं.. कब होगी पूरी मेरी ये ख्वाहिश...
सर्द बूंदे हैं तन को भिगाए... कि पिया कब मिलने को आओगे                                                                                      नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...
सूना घर मुझे काटन को आए... गहने जेवर भी मुझको ना भाए                                                                                   रातभर हाय खुद से लड़ूं मैं... तुम जो ना आए तो फिर क्या करूं मैं                                                                                       तुमरी फोटो को दिल से लगाए... कि पिया कब मिलने को आओगे                                                                                 नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...                                         
हर साये में लगे तेरी आहटें... बढ़ती ही जाए तुझसे मेरी चाहतें                                                                                     पलकों में तुझको छुपाउं... तुझसे ही अपनी दुनियां सजाऊं                                                                                          बिन तेरे अब जिया भी ना जाए.. कि पिया कब मिलने को आओगे..                                                                                     नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...  
काम काम तुम कितने कामकाजी... थोड़ा सा बिजी या फिर ज्यादा हो पाजी                                                                      याद नहीं करते या प्यार ही नहीं करते हो... जाने किस बात पे तुम इतना अखरते हो                                                         जो रूठी तो ना मानूंगी मनाए... कि पिया कब मिलने को आओगे..                                                                                    नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...


दीपक यादव

ये हैं Md. गुलज़ार खान...

बीते दिन गुरुग्राम में गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन पर उतरकर अपने मित्र Abhishek Tripathi की प्रतीक्षा कर रहा था.. एक निश्चिंत और भोली मुस...