कुछ दिन पहले की बात है रात को चैन की नींद सो रहा था.. सपने में कोई गाना गुनगुना रहा..उठा तो सोचा कि ये गाना कौन सा है, किस फिल्म का है दिमाग पर जोर डाला तो भी कुछ याद नहीं आया.. अगले दिन बस दिनभर ये गाना गुनगुनाता रहा.. पहली दो लाईनें ही आईं थी सपने में आगे गुनगुनाते हुए खुद ही बना दिया....
कब
मिलने को आओगे....
कारी बदरी का मौसम
सताए.. कि पिया कब मिलने को आओगे नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे....
सावन की हाय पहली
बारिश.. करती नहीं क्या तुमसे गुजारिश... रस्ता देखूं मैं.. हर
पल सोचूं मैं.. कब होगी पूरी मेरी ये ख्वाहिश...
सर्द बूंदे हैं तन
को भिगाए... कि पिया कब मिलने को आओगे नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...
सूना घर मुझे काटन
को आए... गहने जेवर भी मुझको ना भाए रातभर हाय
खुद से लड़ूं मैं... तुम जो ना आए तो फिर क्या करूं मैं तुमरी फोटो को दिल से लगाए... कि पिया कब
मिलने को आओगे नैन राहों में बैठी
हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...
हर साये में लगे
तेरी आहटें... बढ़ती ही जाए तुझसे मेरी चाहतें पलकों में तुझको
छुपाउं... तुझसे ही अपनी दुनियां सजाऊं बिन तेरे अब जिया भी ना जाए.. कि पिया कब मिलने को आओगे.. नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि पिया कब मिलने को आओगे...
काम काम तुम कितने
कामकाजी... थोड़ा सा बिजी या फिर ज्यादा हो पाजी याद नहीं
करते या प्यार ही नहीं करते हो... जाने किस बात पे तुम इतना अखरते हो जो रूठी तो ना
मानूंगी मनाए... कि पिया कब मिलने को आओगे.. नैन राहों में बैठी हूं बिछाए... कि
पिया कब मिलने को आओगे...
दीपक यादव
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