शुक्रवार, 3 जनवरी 2014

वाह पीएम साहब...



वाह पीएम साहब...

क्या विडम्बना है हमारे देश की। हमारे देश के पीएम की नाक के नीचे जब लगातार घोटाले हो रहे थे तब पीएम साहब कहते थे मेरी खामोशी अच्छी है। और अब जब सत्ता का पतन उनको साफ नजर आ रहा है तो प्रेस कान्फ्रेंस कर रहे हैं। सैकड़ों पत्रकारों के बीच ये कान्फ्रेंस गोलमोल जवाबों और दूसरों पर छींटाकसी में तब्दील होती साफ दिख रही है। एक और रोचक बात तो ये है कि हमारे कुछ पत्रकारों में अभी हिंदी के प्रति सम्मान बाकी है इसी लिए वो हिंदी में प्रश्न पूछ रहे हैं। लेकिन मनमोहन जी इस पर भी नही समझ रहे कि उनको सुनने वाली 80 प्रतिशत जनता हिंदी भाषी है। अब वो हिंदी बोल नहीं पाते या बोलना नहीं चाहते ये तो उनकी मंशा है और वो ही जाने। किसी हद तक सही भी है हिंदी में बातें कुछ ज्यादा ही प्रत्यक्ष हो जाती हैं। लोगों का अंग्रेजी में सॉरी कहना तो आम बात है लेकिन जब किसी को हिंदी में बाबा माफ करो कह दिया जाय तो वो खुद को भिखारी समझ कर बुरा मान जाता हैं। खैर अपनी अपनी समझ है। एक कहावत है डूबते को तिनके का सहारा लेकिन आजकल की कहावत बदल चुकी है डूबते ने साथी को डुबाया। कांग्रेस खुद तो डूब ही रही है और जाने किस किस को डूबाएगी ये तो लोकसभा के मैदान पर दिख जाएगा। फिलहाल देश इस वक्त नमों नमों जप रहा है शायद 2014 में ये मंत्र कुछ कमाल कर जाए। अच्छा ही है बदलाव होना चाहिए दस साल से कांग्रेस का दाल- चावल खाकर देश का मन उब चुका है। दिल्ली में केजरीवाल सबसे बड़ा उदाहरण है अब जनता को काम चाहिए बहुत हुए वादे। अब गरीब के घर खाना खाने की नही उसके घर खाना पहुंचाने की बारी है। ये अंग्रेजी वाली प्रेस काफ्रेंस ज्यादा दिन तक नहीं चलेगी काम करो, कार्यवाई करो नही तो हुक्का पानी बंद होने की नौबत आ जाएगी। जय हिंद जय भारत

दीपक यादव     

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