गुरुवार, 25 जुलाई 2013

वापस कभी ना आएगा...

वापस कभी ना आएगा...



आज बरसों बाद मुलाकात को वो मंजर मिला
 दिल की है फरियाद तू भूल जा सब शिकवा गिला

फिर से इन आंखों में दिलकश नए सपने जगा
 चल कहीं दूर तू जमानें का न हो कतरा जहां।

यादों के उस किले में नई सी एक मशाल जला
 दफ्न उस अंधेरे को कर दिल पर जो था छाया हुआ।

वक्त हो चला है काफी तनहाईयों के बीच में
 तकदीर बुला रही तुझे आ जा मेरी तकदीर में।

अब भी इस वक्त को जो तू न समझ पाएगा
 ये बीत रहा है बीतेगा वापस कभी न आएगा।

लाख फिर तू कर ले जतन ये सोच कर पछताएगा
 ये क्यूं गया ये क्यूं गया क्या कभी न वापस आएगा।


दीपक यादव


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