हमरी बकबक 4......
आज स्वतंत्रता दिवस पर लोग
एक दूसरे को बधाई दे रहे हैं... बच्चे स्कूल से मिली मुफ्त की मिठाई का लुत्फ उठा
रहे हैं... नेता एक तरफ झंडा लहरा रहे हैं और साथ ही एक दूसरे को गरिया रहे हैं...
सुबह देर तक सोया था उठा तो रेडियो पर देशभक्ति गाने बज रहे थे... रिमोट उठाया
टीवी ऑन किया तो मीडिया मोदी और मनमोहन के बयान पर चुटकियां ले रहा था... चैनल
बदला तो एक चैनल पर यूपी के सीएम अखिलेश भईया मंच पर आए और आते ही उनको लिखी
लिखायी स्क्रिप्ट मिल गई और भईया जी स्माईल करते हुए भाषण में लीन हो गए... फिर
चैनल बदला तो एक तरफ सोनिया जी अपने दफ्तर में झण्डा रोहण कर रहीं थीं उसी दौरान
राष्ट्रगीत का आह्वाहन किया गया सुनियोजित तरीके से कुछ बच्चे और महिलाएं
राष्ट्रगीत गानें लगीं... उस वक्त उन गीतकारों के अलावा सभी के होठ सिले हुए थे...
या ये भी कह सकतें हैं शायद उनकों आता ही न हो... हैरानी तो तब हुई जब राष्ट्रगान
के वक्त भी सभी के होठ शांत थे... बात- बात पर सबकी खाल उधेड़ने वाला मीडिया शायद
ये भूल गया था राष्ट्रगान के दौरान चलने या हिलने से राष्ट्र और उस गान का अपमान
होता है फिर भी कैमरे को घुमाए जा रहा था... शायद कैमरा घुमाने से राष्ट्रगान का
अपमान नहीं होता होगा... जैसा की स्कूल के समय से सीखा था तो राष्ट्रगान शुरू होते
ही सावधान हो गया था... राष्ट्रगान खत्म होते ही चैनल बदला तो फिल्मी चैनल
राष्ट्रभक्ति फिल्मों से पटे हुए थे... सोचा थोड़ा बाहर की हवा खाई जाए... आज
छुट्टी जो थी तो चौराहे पर पास पड़ोस के लोग जमात लगाए थे... चर्चा का विषय देश था
और सभी अपनी अपनी तरह से देश को गरिया रहे थे... कुछ काम तो था नहीं आज तो सोचा
चलो कहीं घूम ही आते हैं... थोड़ी ही दूर निकले थे तो देखा करीब 20- 25 जवान
मोटरसाईकिल पर तिरंगा लगाए वंदे मातरम का नारा लगा रहे थे और आती जाती लड़कियों को
देखकर नारे की टोन थोड़ी बदल भी लेते थे... खैर क्या करें बेचारे तिरंगा और नारा
ना होता तो शायद पुलिस वाले कुछ दान दक्षिणा मांग लेते... इन सब के बीच कब शाम हो
गई पता ही नहीं चला... हमारे मित्र का फोन आया कुछ घर के लिए सामान लेना है खाली
हो तो आ जाओ साथ चलते हैं हमने भी सोचा काम तो कुछ है नहीं चलो यही सही... घंटे भर
बात हम लोग एक मॉल पहुंचे... विदेशी (अमेरिकन) कंपनी में देशी लोग छाती पर तिरंगा
लगाए नौकरी कर रहे थे... हमलोगों की तरह सैकड़ो लोग छुट्टी के दिन घर का समान ढो
रहे थे... इसी कशमकश में आजादी का दिन खत्म और कल से फिर गुलामी शुरू... कोई नौकरी
का गुलाम, कोई धंधे का गुलाम, कोई बीवी का गुलाम, गुलामी तो हमें विरासत में मिली
है बाकि 364 दिन की सच्चाई तो यही है ना.... चलिए कोई बात नहीं आज के दिन के लिए
तो फिर एक बार आजादी मुबारक...
जय हिंद जय भारत।
दीपक यादव
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