हमरी बकबक.....
26 जुलाई बड़ा ही एतिहासिक दिन है भारत के लिए । लेकिन इस वक्त की हो रही स्वार्थिक राजनीति ने इस दिन के महत्व को खत्म कर दिया है । आज का दिन वाकई अहम है जहां एक तरफ देश विजय दिवस में गर्व से छाती चौड़ी कर रहा है वही दूसरी ओर राजनेताओ की अंधाधुंध बयान बाजी से अपना सिर पीट रहा है। पिछले पांच साल से सुर्खियों में रहे बटला हाउस पर भी फैसला आ गया इसमें हमारे जो नेता जी लोग कह रहे थे कि ये एनकाउंटर फर्जी था.. फैसला आने के बाद अब वो बगले झांक रहे हैं... जबकि बात बात पर लोगों के अधिकारों के लिए टांग अड़ाता मानवाधिकार आयोग भी कह रहा है कि ये मानवाधिकार हनन नहीं है.. मैं तो ये सोच रहा हूं कि... एक बार अगर ये मान भी लिया जाय कि एनकाउंटर फर्जी था तो फिर इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा को गोली किसने मारी क्या दिल्ली पुलिस ने खुद ही अपने इंस्पेक्टर को गोली मार दी... लेकिन नेता जी लोगों को समझाए कौन... उनको अपने वोट बैंक से मतलब है देश जाए चूल्हे भाड़ में... देखा अल्प संख्यकों का मुद्दा है और हर टोपी के नीचे एक वोट दिखा तो कूद गए वोट बटोरने और ये भी नही सोचा कि क्या क्या बकबका गए इस चक्कर में... खैर छोड़िए इन सफेज पोशो की बातें... इस विजय दिवस पर भारतीय सेना ने एक झड़की दी तो चीनी सेना के जवान मिमियाने लगे.. पता चला है फिर चीनी सेना भारत की हद में पिकनिक मनाने आई थी लेकिन इस बार जब भारतीय सेना ने जब पूछा कि इधर कैसे तो चीनी सैनिक बोले ये हमारा एरिया है लेकिन जब भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों का कान उमेठा तो चीनी घुल गई और लगे मिमियाने.. चीनी सैनिकों ने कहा भूख लगी है कुछ खाने को दे दीजिए... खैर हमारे जवानों ने महानता का परिचय देते हुए उनको जूस पिलाया और वापस इधर कभी ना दिखने की शर्त के साथ नौ दो ग्यारह कर दिया...अब मैं भी जल्दी से नौ दो ग्यारह हो लूं ऑफिस के लिए क्योकि आज-कल मेरे भी दिन ठीक नहीं चल रहे हैं......
दीपक यादव
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें