।। बूंदें ।।
आंखों के उस पार कुछ बूंदों का बसेरा है।
निकल कर चौखट से लड़खड़ा सी जाती हैं।
बेतरतीब नमकीन समंदर सी बहती हैं।
ढनगती हुई होठों के मुहाने को छू जाती हैं।
कभी गम तो कभी खुशी से झूमती हैं।
इन बूंदों को संभालो बेवजह ज़ाया न करो
दीपक यादव
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