वो दौर अलग था जब हम अमीर हुआ करते थे..
वो जो चवन्नी थी, बड़ी देर तलक चलती थी
मिलती जो अठन्नी, तो मिज़ाज में ऐंठन बढ़ाती थी
जो हाथ में आया बारह आना, तो समझो जेब में ज़माना
रुपए की तो बात ही गजब, बादशाहों सा रुतबा था
खनकती रेजगारी रईसी का अहसास दिलाती थी..
बेहिसाब थी ख्वाहिशें और सब पूरी हो जाती थीं
वो दौर अलग था जब हम अमीर हुआ करते थे...
इन चवन्नी, अठन्नियों का अपना अलग ही मजा था..
कहीं चकरी की तरह नचाते थे तो कहीं माथे पर चिपकाते थे..
बड़ी बेढब थी बचपन की वो चवन्नी..
#मनमस्तमगन

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