शनिवार, 27 जुलाई 2013

हमरी बकबक 3........


हमरी बकबक 3........



एक सुझाव देना चाहुंगा नोएडा के लोगों को अब आप लोग सांस लेने के लिए ऑक्सीजन की जगह किसी और गैस का इंतजाम कर लीजिए...क्योकि रजिस्ट्री विभाम अब पेड़ो पर भी स्टांप शुल्क वसूलेगा... यानि अगर आर हरियाली पसंद हैं और कोई हरे भरे पेड़ो सहित घर खरीदने वाले हैं तो अपनी अंटी और भी मजबूत कर लिजिए... मुझे लगता है रजिस्ट्री बाबू की गाड़ी पर इस बरसात में कोई पेड़ तो नही गिर गया जो सारे पेड़ों के नाम जुर्माने की तरह से टैक्स लगा दिया.. वो दिन दूर नहीं है जब पहले पेड़ की छांव और फिर ऑक्सीजन पर भी टैक्स लगाएगी...लेकिन फिर तो एक और आफत शुरू होगी.. किस पेड़े से किसने कितना ऑक्सीजन लिया इस सबके हिसाब के लिए बड़ा माथा पच्ची करनी होगी... मै तो सोच रहा हूं सरकार में जुगाड़ लगाना शुरू कर दूं अगर लोगों को ऑक्सीजन बेचने का ठेका मिल जाए तो अच्छा खांसा धंधा चल पड़ेगा... सोचिए हम लोग कितने एडवांस हो जाएंगे... हर महीने मोबाइल की तरह से खुद के लिए ऑक्सीजन का रिचार्ज करवाना पड़ेगा... कुछ अमीर लोग तो पोस्ट पेड सर्विस लेंगे, रोमिंग पर और भी ज्यादा कमाई होगी... मैने तो सोच लिया है ये धंधा सही है...  और हां जरा इस बात को सिक्रेट रखिएगा अगर बाहूबलीयों को पता चल गया तो अपने दल बल के साथ टेंडर डालने पहुंच जाएंगे.. और बिना मतलब के दंगा फसाद होगा, लोग बे मौत मारे जाएंगे, लाशे गिरेंगी... अगर आप लोग चाहते हैं इतना बड़ा फसाद होने से बच जाए तो आप लोगों में जिसे भी फ्रेंचाइजी लेनी हो तो मुझसे संपर्क कर सकता है... ऑक्सीजन की एडवांस बुकिंग पर छूट भी मिलेगी...खैर बहुत हो गई बकबक चले कुछ काम धाम भी कर लिया जाए..ठेका जो लेना है...

दीपक यादव( स्वतंत्र पत्रकार)

हमरी बकबक 2........


हमरी बकबक 2........




पता नहीं सरकार में बैठे लोगों को क्या हो गया है, और एक के बाद हो रहे मूर्खास्पद निर्णय से जनता का क्या होगा... खैर जो भी होगा मजूरे खुदा होगा हम काहे खाम खां अपना सिर खपाएं..सुना है दिल्ली में 5 रुपए और मुंबई में 12 रुपए में खाना मिल रहा है... कहां मिल रहा है पता चले तो भईया हमें भी बता देना हर महीने हमारे भी नून तेल में हजारों फुक रहे हैं शायद बच जाएं...  आज पेपर में एक खबर थी 'बरसात में खुल रही है खराब सड़कों की पोल' अमां यार ये पेपर वाले भी जो हैं कोई ना कोई बहाना खोजते रहते हैं सरकार को घेरने का.. अरे हमारे देश के लोगों का टैलेंट भी नहीं जानते जब सड़कें एक दम सही रहती हैं तो लोग उसपर ऊट-पटांग गाड़ी चलाते हैं फर्राटा भरते हुए रोज तरह तरह के एक्सीडेंट करते हैं... सड़क पर गढ्ढा होने से दांए- बाएं करने में ही ध्यान रहता है तो हादसे कम होते हैं... ये खराब सड़के लोगों की जान को सुरक्षित रखने की एक योजना है लेकिन लोग जो है आदत से मजबूर सरकार को ही दोष देते हैं...खैर हम भी बंद करें अपना टीम टामड़ा बरसात होने वाली है चलें चाय पकौड़ी की जुगाड़ में....... 


दीपक यादव
(स्वतंत्र पत्रकार)

शुक्रवार, 26 जुलाई 2013

हमरी बकबक.....


हमरी बकबक.....




26 जुलाई बड़ा ही एतिहासिक दिन है भारत के लिए । लेकिन  इस वक्त की हो रही स्वार्थिक राजनीति ने इस दिन के महत्व को खत्म कर दिया है । आज का दिन वाकई अहम है जहां एक तरफ देश विजय दिवस में गर्व से छाती चौड़ी कर रहा है वही दूसरी ओर राजनेताओ की अंधाधुंध बयान बाजी से अपना सिर पीट रहा है। पिछले पांच साल से  सुर्खियों में रहे बटला हाउस पर भी फैसला आ गया इसमें  हमारे जो नेता जी लोग कह रहे थे कि ये एनकाउंटर फर्जी था.. फैसला आने के बाद अब वो  बगले झांक रहे हैं...  जबकि बात बात पर लोगों के अधिकारों के लिए टांग अड़ाता मानवाधिकार आयोग भी कह रहा है कि ये मानवाधिकार हनन नहीं है.. मैं तो ये सोच रहा हूं कि... एक बार अगर ये मान भी लिया जाय कि एनकाउंटर फर्जी था तो फिर इंस्पेक्टर मोहनचंद शर्मा को गोली किसने मारी क्या दिल्ली पुलिस ने खुद ही अपने इंस्पेक्टर को गोली मार दी... लेकिन नेता जी लोगों को समझाए कौन... उनको अपने वोट बैंक से मतलब है देश जाए चूल्हे भाड़ में... देखा अल्प संख्यकों का मुद्दा है  और हर टोपी के नीचे एक वोट दिखा तो कूद गए वोट बटोरने और ये भी नही सोचा कि क्या क्या बकबका गए इस चक्कर में... खैर छोड़िए इन सफेज पोशो की बातें... इस विजय दिवस पर भारतीय सेना ने एक झड़की दी तो चीनी सेना के जवान मिमियाने लगे.. पता चला है फिर चीनी सेना भारत की हद में पिकनिक मनाने आई थी लेकिन इस बार जब भारतीय सेना ने जब पूछा कि इधर कैसे तो चीनी सैनिक बोले ये हमारा एरिया है लेकिन जब भारतीय जवानों ने चीनी सैनिकों का कान उमेठा तो चीनी घुल गई और लगे मिमियाने.. चीनी सैनिकों ने कहा भूख लगी है कुछ खाने को दे दीजिए... खैर हमारे जवानों ने महानता का परिचय देते हुए उनको जूस पिलाया और वापस इधर कभी ना दिखने की शर्त के साथ नौ दो ग्यारह कर दिया...अब मैं भी जल्दी से नौ दो ग्यारह हो लूं ऑफिस के लिए क्योकि आज-कल मेरे भी दिन ठीक नहीं चल रहे हैं......

दीपक यादव

गुरुवार, 25 जुलाई 2013

भंवर...






        भंवर...




किस्मत की जो किताब है वो गुम है कहीं
हिम्मत की कलम भी चल रही है रुक- रुक कर 

जिंदगी की क्लास अब हो रही है उबाऊ
मौत के इंम्तहान को मैं पार कैसे पाऊं

जहां के इस स्कूल में मुझसे हैं हजार
जो मौत से जीतकर जिंदगी से रहे हैं हार

खुद से लड़ रहे हैं ना जाने जंग कौन सी
जिसमें ना कोई जीत है और ना ही कोई हार...

                                              
                                                                     दीपक यादव

भंवर...





           भंवर...



किस्मत की जो किताब है वो गुम है कहीं
हिम्मत की कलम भी चल रही है रुक रुक कर

जिंदगी की क्लास अब हो रही है उबाऊ
मौत के इम्ताहांन को मैं पार कैसे पाऊं

जहां के इस स्कूल में मुझ जैसे हैं हजार
जो मौत से जीत कर जिंदगी से रहे हैं हार

खुद से लड़ रहे हैं ना जाने कौन सी जंग
जिसमें ना कोई जीत है और ना ही कोई हार...

दीपक यादव

वापस कभी ना आएगा...

वापस कभी ना आएगा...



आज बरसों बाद मुलाकात को वो मंजर मिला
 दिल की है फरियाद तू भूल जा सब शिकवा गिला

फिर से इन आंखों में दिलकश नए सपने जगा
 चल कहीं दूर तू जमानें का न हो कतरा जहां।

यादों के उस किले में नई सी एक मशाल जला
 दफ्न उस अंधेरे को कर दिल पर जो था छाया हुआ।

वक्त हो चला है काफी तनहाईयों के बीच में
 तकदीर बुला रही तुझे आ जा मेरी तकदीर में।

अब भी इस वक्त को जो तू न समझ पाएगा
 ये बीत रहा है बीतेगा वापस कभी न आएगा।

लाख फिर तू कर ले जतन ये सोच कर पछताएगा
 ये क्यूं गया ये क्यूं गया क्या कभी न वापस आएगा।


दीपक यादव


ये हैं Md. गुलज़ार खान...

बीते दिन गुरुग्राम में गुरु द्रोणाचार्य मेट्रो स्टेशन पर उतरकर अपने मित्र Abhishek Tripathi की प्रतीक्षा कर रहा था.. एक निश्चिंत और भोली मुस...